कहने को तिकड़ी थी।
एक थी बुलबुल, एक थी टीना, और एक मैं दोनों से छोटी, बोले तो सबसे छोटी टिन्नी,,, ।
मुझे तब भी झुंडों की जरुरत नहीं थी, वो दोनों मुझसे बड़ी थी, उनके साथ खेलना अगर ठीक लगता तो ही खेलती, नहीं तो अकेले ज्यादा खुश थी।
हाँ, तो कहानी की शुरुआत ऐसे है,
रविवार की भोर, मेरे उस पेड़ों के झुरमुट जंगल में इतना कोलाहल होता पक्षियों का जैसे मानो वो मुझे ही उठाना चाह रहे हों, कहना चाह रहे हों "आज तो रविवार है, आज हम सब साथ रहेंगे।"
6 बजे रविवार के दिन कोई बच्चा नहाता है क्या?
पर मुझे नहलाने में इससे देरी होती तो मैं बड़-बड़ा कर घर सिर पर उठा लेती ( बाकि बच्चों की तरह हर बात पर नहीं रोती थी, पहले डट कर सामना करती, फिर जब वश में नही रहता तो ऐसा रोती जैसे जन्मों से रोई नहीं हो),
फिर सुबह पहले नाश्ता करवा देती माँ , जानती थी अब जो भूख भी लगे तो घर वापस ना आयेगी, ( मैं इस डर से नहीं जाती थी कि वापस गई तो फिर से खेलने नहीं भेजेंगे)।
घर के दरवाजे से निकलने से पहले इतना प्यार से माँ को पटाना कि कहीं बस मना न करदे,
चालाकी मैंने तभी सीख ली थी।
घर के दरवाजे से बाहर जाते ही पहला मकसद होता, "पहले इन लोगों की आँखों से ओझल होना है, कहीं वापस बुला लिया तो"
और फिर शुरू होता हमारा घुमंतू अभियान।
बुलबुल, टीना अगर साथ होती तो हम, बंद पड़े कमरों की नीची खिडकियों को धक्का मार मार परखते, कहीं कोई खिड़की खुली रह गई हो (हम कामयाब हमेशा होते थे)
फिर एक एक कर खिड़की से अन्दर जाते,( बड़े और पुराने जमाने के कमरे थे, जिनमे चुना-पत्थर काम में लिया जाता था, जिनका तापमान हमेशा मध्यम रहता, गर्मी-सर्दी दोनों का ही कम असर हो पाता था उन पर,)
खाली पड़े कमरों में हम जोर जोर से चिल्लाते, आवाज गूंजती हम खुश हो जाते।
फिर जागता लड्कीपना, (उम्र जो भी हो, असर रहता है)
"चलो खाने के लिए डिशेस बनाते हैं।"
हम निकलते बाहर। रंग-बिरंगे फूल, पत्तियां, सूखे पत्ते, पानी, और हाँ रेत भी :) ।
सब झोली में भर लेते। पेड़ो के पत्तों की पत्तलों पर, उस जंगली भोजन को सजाते, तरह तरह से, और जिसकी सुंदर डिशेज, वो विजेता। (मुझे याद नही कभी मैं विजेता रही थी)
क्युकी मुझे उनके साथ की वजह से ये सब करना पड़ता था, मेरा मन तो एक छोर बाग़, एक छोर सरस्वती मंदिर, एक छोर स्टेडियम, एक छोर राम मंदिर और बीच में छोटा हनुमान, इन्ही को नापने में रहता था।
एक बहुत छोटा सा हनुमान मंदिर था, उसमें यूँ तो प्रभु की खड़े की मूर्ती थी, पर एकमात्र वही कद में मुझसे छोटे थे वहां, तो मेरे लिए मेरे गुड्डे जैसे थे। पंडितजी को पता न चले, इसलिए बिना शोर किये जाती, फिर उसके सामने बैठती, उससे अकेले कई देर बातें करती, फिर आगे चढ़ा प्रसाद हम दोनों ( मैं और हनुमंता) खाते, फिर दरवाजे के पीछे रखी मोर-पंख की झाड़ू से मैं झाड़ू लगाती, उनके सामने बैठ, मूर्ती का पूरा विश्लेषण करती, इतना प्रेम था उस मूर्ती से मुझे कि जैसे वो साक्षात् ही सामने है, और मैं छु छु कर देख रही हूँ।
इतना गुप्प अँधेरा हो जाता, पर मुझे घर जाने का ख्याल नहीं आता। पक्षी इतना शोर मचाने लगते, माँ चिंतित इसलिए हो जाती कि इतने जंगल में कहाँ खोजुंगी, कोई जानवर खा जाए, शाम का समय है।
आखिर हर बार भाई अपने दोस्तों के साथ मुझे खोजने निकलता, गुस्से में, बहुत जोर जोर से आवाज़ लगाता.. टिन्नी...टिन्नी..
बोल जा..नहीं तो मम्मी की डांट पड़ेगी।.....
इतना बड़ा जंगल, एक बच्चा आराम से छुप सकता था, अँधेरे में जब तक मैं जवाब न दूँ,भाई मुझे ना खोज सके।
मैं भी जिद्दी, घर जाउंगी, पर भाई के साथ नहीं, मैं जवाब नही देती। फिर पीछे से घर पहुंचती, मम्मी दरवाजे में खड़ी मिलती,
हाँ,
हर रविवार की शाम मुझे माँ से सज़ा मिलती थी। :( :'(
कोई नही समझता था, कि मैं उस छोटे हनुमंता के साथ ही खुश हूँ।
# बचपन गुंजन का
© गुंजन झाझारिया
कहानी की दुनिया
रविवार, फ़रवरी 16
बचपन : कड़ी भाग 2
रविवार, जुलाई 15
बेटियों की आजादी..
“रोहन चिड़िया के बर्तन में पानी डाल दे...कितनी गर्मी है।.” सरला
चिल्लाई।
सरला का स्वाभाव उसके नाम के विपरीत ही था। छोटी छोटी बात को वो
चिल्ला कर ही कहती थी और उसकी आदत प ड़गई थी सब घर वालों को , साथ में पड़ोस की
वर्मा आंटी को भी।
“माँ, चाय..”
“अरे...चाय रख और पहले इस बर्तन में पानी डाल..” (जब तक कोई काम हो ना जाए, सरला बार बार कहती रहती!)
“माँ, रोहन पानी लेके आ रहे हैं, आप चाय पियो।मैं सुबह डाल रही थी, फिर वो कबाड़ी वाला आ गया और भूल ही गई” स्वाति ने चाय का कप सरला के हाथ में पकडाया।
रोहन ने चिडियाओं को पानी पिलाया और तीनों बैठकर चाय पीने लगे।
(सरला के पति फ़ौज में थे..ब्याह के ३ बरस बाद ही जब रोहन कोई ८ महीने का था, वो देश की लाज बचाते हुए शहीद हो गए..और सरला पीछे अपने इकलोते बेटे के साथ आँसू बहती रह गयी।एक निजी स्कूल में नौकरी की और रोहन को पढाया-लिखाया।आज बेटा कलेक्टर है और अब सरला पूरा आराम फरमाती है। जिंदगी भर की मेहनत की पूरी भरपाई ले रही है।)
“रोहन, आज टीवी में जो खबर दिखा रहे थे, आपने सुना?” स्वाति ने चुप्पी तोड़ी।
“नहीं, आज बहुत काम था। मैं सुबह अखबार भी नहीं पढ़ पाया..बताओ..” रोहन वैसे पूरा अखबार चाट देता था !
“कुछ नहीं बेटा, जमाना खराब आ गया है। मैंने देखी थी और बहु को भी दिखाई। कल एक ही दिन में हमारे प्रदेश में ५ नवजात शव मिले बच्चियों के। लोगो को भी क्या कहो। पूरा समाज तो आँखों में खून लिए, जीभ लटकाए घूमता है। बाप और भाई ही नहीं छोड़ते।ऐसे में कोई बेटी जन कर भी क्या करे?”
“हम्म...बात तो सोचने वाली है माँ..पर ये तो कोई हल नहीं है समस्या का...यदि बेटियां सुरक्षित नहीं तो उन्हें जनों ही मत।” रोहन की त्योरियां देख कर लग रहा था कि उसे माँ की सुनाई खबर पर बहुत गुस्सा आ रहा है..!
“तो आप ही बताओ क्या हल है? रोहन सब कह देते हैं। कौन करता है। कोई एक भी बताओ, जो आगे आकर बोला हो कि इस विषय में कोई सभा आयोजित करो, मीटिंग बुलाओ , साथ में बैठकर कोई उपाय निकालेंगे.??.अरे ये सब होता रहता है, और लोग थोडा गुस्सा और नाराजगी जता कर अपनी दिनचर्या के काम में लग जाते हैं।”
स्वाति बड़ी ही क्रांतिकारी विचारों की थी।बस बहु होने के कारन थोडा परिवार की इज्ज़त का सोचकर शांत रहती थी। वरना उसका मन तो होता था कि अकेले ही सब से लड़ ले और शुरुवात कर दे जंग की।
“स्वाति बात तो तुम्हारी भी पते की है।.चलो तुम खाना बना लो पहले। आज माँ को डॉक्टर के पास लेके जाना है। इस बारे में बाद में बात करेंगे.” रोहन तो स्वाति का गुस्सा और तर्क देखकर निशब्द हो गया था और जनता था कि इस विषय को और बढ़ाया तो श्रीमतीजी उत्तेजित हो जाएँगी।
(खाना वाना निपटा कर तीनों डॉक्टर के पास गए..पर रोहन के मन में अभी भी माँ की सुनाई खबर और स्वाति का तर्क ही घूम रहा था..अपने पिता के लिए रोहन के मन में अथाह सम्मान था..हो भी क्यों ना? बचपन से ही स्कूल , कॉलेज हर जगह उसे सबने सम्मान दिया कि ये शहीद का बेटा है। देशभक्ति, समाजसेवा..सब माँ में सिखाया और पिता के जींस से भी पाया। तभी तो कलेक्टर बनने की ठानी। निचले स्तर पर लोगो से सीधा रूबरू होने का मौका मिलेगा और उनकी समस्याए सुलझाने का भी।)
रात के १० बज गए ..और सरला अपने कमरे में सोने चली गई। स्वाति कुछ किताब में उलझी थी। रोहन अपने लैपटॉप पर वही खबर देख रहा था। तभी अचानक उसे लगा कि उसे कुछ करना चाहिए।
एकाएक स्वाति की बातें दिमाग में आयीं ( किसी ने मीटिंग बुलवाई?)
क्यों ना सारे राज्य के कलेक्टर्स की मीटिंग बुलवाई जाए। कुछ ऐसी सख्त योजना मिलकर बने जाए जिससे कि कम से कम अपराध हों। पहले जो हैं उनकी इज्ज़त बचायी जाए और फिर जन्म देने और पालने पर जोर दिया जाए।
तुरंत उसने ईमेल लिख डाली सम्बंधित अधिकारी को।
“रोहन ११ बज गए? लैपटॉप में ही लगे रहा करो..सोना नहीं है क्या? परसों १५ अगस्त है। मैं भी चलूंगी आपके साथ। आपको कौन कौन से निमत्रण आयें हैं आपने बताया नहीं..?” स्वाति ने किताब के पन्ने को मोड़ते हुए कहा।
“स्वाति अभी कुछ नहीं पता, हाँ, तुम्हें लेके चलूँगा..पर कल ही बताऊंगा कहाँ जाना है...” रोहन ने तिरछी निगाह से मुस्कुराते हुए कहा। रात भर करवते बदलता रहा और सोचता रहा कि कैसे प्लानिंग करनी है? क्या क्या स्टेप्स होंगे?
सुबह पहली किरण के साथ स्वाति से पहले उठकर अपना लैपटॉप खोला!
अधिकारी का जवाब हाँ में था और उसने तुरंत वह ईमेल आगे सभी कलेक्टर्स को भेज दी थी और उसने सबसे सुबह ९ बजे तक समय निर्धारित करने को कहा साथ ही रोहन को शाबाशी भी मिली ऐसा सोचने के लिए।
रोहन नाच रहा था। जानता था ये शुरुवात है, पर किसी ने शुरुवात तो की।
“स्वाति..स्वाती...माँ...उठो..”
“क्या हुआ..मैं चाय बना लेती हूँ। स्वाति को सोने दे। फिर सारा दिन काम करेगी “ सरला उठकर आई।
“माँ , चाय के लिए नहीं उठा रहा, मेरी क्रांतिकारी बीवी के विचारों की जरुरत है। उससे प्लान्स लेने है, कि हम और कैसे और क्या कर सकते हैं?” रोहन उतावलेपन में भूल गया कि उसने मीटिंग के बारे में स्वाति और सरला को कुछ नहीं बताया था!
“आंखे मसलकर सरला बोली, कैसे प्लान्स...? क्या बोल रहा सुबह सुबह कलेक्टर बाबा.” सरला हंसी..
“ओह्हो, मैंने तो आप दोनों को कुछ नहीं बताया था..:(“ रोहन को याद आया..
“माँ आप रुको मैं चाय बना देती हूँ....आप इनकी सुनो ..पता नहीं क्या चल रहा है दिमाग में। रात भर ना खुद सोये ना सोने दिया। करवट बदल रहे थे। ऐसे कोई सो सकता है क्या पास में..” स्वाति थोड़े गुस्से में थी..
“अरे यार स्वाति, तुम भी कमाल करती हो। तुम्हें सोने की पड़ी है और यहाँ पूरा प्रशासन हिल गया।हा हा “ रोहन बहुत अच्छे मूड में था...
“क्या मतलब” दोनों सास-बहु एक ही स्वर में बोली..
रोहन ने दोनों को पूरी बात बतलाई और साथ में वो मेल भी दिखाई..
“माँ, चाय..”
“अरे...चाय रख और पहले इस बर्तन में पानी डाल..” (जब तक कोई काम हो ना जाए, सरला बार बार कहती रहती!)
“माँ, रोहन पानी लेके आ रहे हैं, आप चाय पियो।मैं सुबह डाल रही थी, फिर वो कबाड़ी वाला आ गया और भूल ही गई” स्वाति ने चाय का कप सरला के हाथ में पकडाया।
रोहन ने चिडियाओं को पानी पिलाया और तीनों बैठकर चाय पीने लगे।
(सरला के पति फ़ौज में थे..ब्याह के ३ बरस बाद ही जब रोहन कोई ८ महीने का था, वो देश की लाज बचाते हुए शहीद हो गए..और सरला पीछे अपने इकलोते बेटे के साथ आँसू बहती रह गयी।एक निजी स्कूल में नौकरी की और रोहन को पढाया-लिखाया।आज बेटा कलेक्टर है और अब सरला पूरा आराम फरमाती है। जिंदगी भर की मेहनत की पूरी भरपाई ले रही है।)
“रोहन, आज टीवी में जो खबर दिखा रहे थे, आपने सुना?” स्वाति ने चुप्पी तोड़ी।
“नहीं, आज बहुत काम था। मैं सुबह अखबार भी नहीं पढ़ पाया..बताओ..” रोहन वैसे पूरा अखबार चाट देता था !
“कुछ नहीं बेटा, जमाना खराब आ गया है। मैंने देखी थी और बहु को भी दिखाई। कल एक ही दिन में हमारे प्रदेश में ५ नवजात शव मिले बच्चियों के। लोगो को भी क्या कहो। पूरा समाज तो आँखों में खून लिए, जीभ लटकाए घूमता है। बाप और भाई ही नहीं छोड़ते।ऐसे में कोई बेटी जन कर भी क्या करे?”
“हम्म...बात तो सोचने वाली है माँ..पर ये तो कोई हल नहीं है समस्या का...यदि बेटियां सुरक्षित नहीं तो उन्हें जनों ही मत।” रोहन की त्योरियां देख कर लग रहा था कि उसे माँ की सुनाई खबर पर बहुत गुस्सा आ रहा है..!
“तो आप ही बताओ क्या हल है? रोहन सब कह देते हैं। कौन करता है। कोई एक भी बताओ, जो आगे आकर बोला हो कि इस विषय में कोई सभा आयोजित करो, मीटिंग बुलाओ , साथ में बैठकर कोई उपाय निकालेंगे.??.अरे ये सब होता रहता है, और लोग थोडा गुस्सा और नाराजगी जता कर अपनी दिनचर्या के काम में लग जाते हैं।”
स्वाति बड़ी ही क्रांतिकारी विचारों की थी।बस बहु होने के कारन थोडा परिवार की इज्ज़त का सोचकर शांत रहती थी। वरना उसका मन तो होता था कि अकेले ही सब से लड़ ले और शुरुवात कर दे जंग की।
“स्वाति बात तो तुम्हारी भी पते की है।.चलो तुम खाना बना लो पहले। आज माँ को डॉक्टर के पास लेके जाना है। इस बारे में बाद में बात करेंगे.” रोहन तो स्वाति का गुस्सा और तर्क देखकर निशब्द हो गया था और जनता था कि इस विषय को और बढ़ाया तो श्रीमतीजी उत्तेजित हो जाएँगी।
(खाना वाना निपटा कर तीनों डॉक्टर के पास गए..पर रोहन के मन में अभी भी माँ की सुनाई खबर और स्वाति का तर्क ही घूम रहा था..अपने पिता के लिए रोहन के मन में अथाह सम्मान था..हो भी क्यों ना? बचपन से ही स्कूल , कॉलेज हर जगह उसे सबने सम्मान दिया कि ये शहीद का बेटा है। देशभक्ति, समाजसेवा..सब माँ में सिखाया और पिता के जींस से भी पाया। तभी तो कलेक्टर बनने की ठानी। निचले स्तर पर लोगो से सीधा रूबरू होने का मौका मिलेगा और उनकी समस्याए सुलझाने का भी।)
रात के १० बज गए ..और सरला अपने कमरे में सोने चली गई। स्वाति कुछ किताब में उलझी थी। रोहन अपने लैपटॉप पर वही खबर देख रहा था। तभी अचानक उसे लगा कि उसे कुछ करना चाहिए।
एकाएक स्वाति की बातें दिमाग में आयीं ( किसी ने मीटिंग बुलवाई?)
क्यों ना सारे राज्य के कलेक्टर्स की मीटिंग बुलवाई जाए। कुछ ऐसी सख्त योजना मिलकर बने जाए जिससे कि कम से कम अपराध हों। पहले जो हैं उनकी इज्ज़त बचायी जाए और फिर जन्म देने और पालने पर जोर दिया जाए।
तुरंत उसने ईमेल लिख डाली सम्बंधित अधिकारी को।
“रोहन ११ बज गए? लैपटॉप में ही लगे रहा करो..सोना नहीं है क्या? परसों १५ अगस्त है। मैं भी चलूंगी आपके साथ। आपको कौन कौन से निमत्रण आयें हैं आपने बताया नहीं..?” स्वाति ने किताब के पन्ने को मोड़ते हुए कहा।
“स्वाति अभी कुछ नहीं पता, हाँ, तुम्हें लेके चलूँगा..पर कल ही बताऊंगा कहाँ जाना है...” रोहन ने तिरछी निगाह से मुस्कुराते हुए कहा। रात भर करवते बदलता रहा और सोचता रहा कि कैसे प्लानिंग करनी है? क्या क्या स्टेप्स होंगे?
सुबह पहली किरण के साथ स्वाति से पहले उठकर अपना लैपटॉप खोला!
अधिकारी का जवाब हाँ में था और उसने तुरंत वह ईमेल आगे सभी कलेक्टर्स को भेज दी थी और उसने सबसे सुबह ९ बजे तक समय निर्धारित करने को कहा साथ ही रोहन को शाबाशी भी मिली ऐसा सोचने के लिए।
रोहन नाच रहा था। जानता था ये शुरुवात है, पर किसी ने शुरुवात तो की।
“स्वाति..स्वाती...माँ...उठो..”
“क्या हुआ..मैं चाय बना लेती हूँ। स्वाति को सोने दे। फिर सारा दिन काम करेगी “ सरला उठकर आई।
“माँ , चाय के लिए नहीं उठा रहा, मेरी क्रांतिकारी बीवी के विचारों की जरुरत है। उससे प्लान्स लेने है, कि हम और कैसे और क्या कर सकते हैं?” रोहन उतावलेपन में भूल गया कि उसने मीटिंग के बारे में स्वाति और सरला को कुछ नहीं बताया था!
“आंखे मसलकर सरला बोली, कैसे प्लान्स...? क्या बोल रहा सुबह सुबह कलेक्टर बाबा.” सरला हंसी..
“ओह्हो, मैंने तो आप दोनों को कुछ नहीं बताया था..:(“ रोहन को याद आया..
“माँ आप रुको मैं चाय बना देती हूँ....आप इनकी सुनो ..पता नहीं क्या चल रहा है दिमाग में। रात भर ना खुद सोये ना सोने दिया। करवट बदल रहे थे। ऐसे कोई सो सकता है क्या पास में..” स्वाति थोड़े गुस्से में थी..
“अरे यार स्वाति, तुम भी कमाल करती हो। तुम्हें सोने की पड़ी है और यहाँ पूरा प्रशासन हिल गया।हा हा “ रोहन बहुत अच्छे मूड में था...
“क्या मतलब” दोनों सास-बहु एक ही स्वर में बोली..
रोहन ने दोनों को पूरी बात बतलाई और साथ में वो मेल भी दिखाई..
“ बस अब ९ बजे का इंतज़ार है..देखो क्या समय और तारीख निश्चित होती मीटिंग के
लिए। स्वाति तुम थोडा हेल्प कर दो। साथ में बैठकर एक अच्छा सा प्लान तैयार करते
हैं। सब देख भाल कर मीटिंग में जाना अच्छा होगा।”
रोहन बस बोल ही रहा था और स्वाति रोहन को देख रही थी, कैसा पति मिला है। स्वाति तो खुद बचपन से ऐसे किसी काम में योगदान देना चाहती थी..उसे तो मानो पर लग गए।
भाग भाग कर सारा घर का काम खतम किया ।
और दोनों काम में लग गए, सरला भी साथ में ही थी। तीनों ने तर्क, वितर्क किये..कई बार बहस, गुस्सा भी..और आखिर में बना दिया एक अच्छा सा प्लान,पूरे समाज की बेटियों की सुरक्षा का।
९ बजते ही रोहन ने लैपटॉप खोला। तीनों इतने बेसब्री से मेल देख रहे थे ।
“दूसरे दिन सुबह ही मीटिंग है माँ..” रोहन और स्वाति खुश हो गए।
सरला को बड़ा नाज़ हो रहा था अपने बेटे बहु को देखकर। मन ही मन कह रही थी "रोहन अपने पापा की क़ुरबानी का लाज जरुर रखेगा”
१५ अगस्त की सुबह ८ बजे जहाँ एक और पूरे देश में तिरंगा फहराया जा रहा था, राष्ट्र-गान गाया जा रहा था। आजादी की कहानिया सुनाई जा रही थी।
वही दूसरी और सभी कलेक्टर्स बेटियों की रक्षा के लिए नए और अच्छे नियम लगाने की कवायद में जुटे थे। उनकी आजादी के लिए एक बार फिर सुभाष चंद्र बोश के जैसे रोहन लगा पड़ा था। स्वाति और सरला चैन से टीवी पर कार्यक्रम देख रही थी, इस उम्मीद में की अब राज्य की बेटियां सुरक्षित हो जाएँगी।
copyright @गूंजन झाझरिया
रोहन बस बोल ही रहा था और स्वाति रोहन को देख रही थी, कैसा पति मिला है। स्वाति तो खुद बचपन से ऐसे किसी काम में योगदान देना चाहती थी..उसे तो मानो पर लग गए।
भाग भाग कर सारा घर का काम खतम किया ।
और दोनों काम में लग गए, सरला भी साथ में ही थी। तीनों ने तर्क, वितर्क किये..कई बार बहस, गुस्सा भी..और आखिर में बना दिया एक अच्छा सा प्लान,पूरे समाज की बेटियों की सुरक्षा का।
९ बजते ही रोहन ने लैपटॉप खोला। तीनों इतने बेसब्री से मेल देख रहे थे ।
“दूसरे दिन सुबह ही मीटिंग है माँ..” रोहन और स्वाति खुश हो गए।
सरला को बड़ा नाज़ हो रहा था अपने बेटे बहु को देखकर। मन ही मन कह रही थी "रोहन अपने पापा की क़ुरबानी का लाज जरुर रखेगा”
१५ अगस्त की सुबह ८ बजे जहाँ एक और पूरे देश में तिरंगा फहराया जा रहा था, राष्ट्र-गान गाया जा रहा था। आजादी की कहानिया सुनाई जा रही थी।
वही दूसरी और सभी कलेक्टर्स बेटियों की रक्षा के लिए नए और अच्छे नियम लगाने की कवायद में जुटे थे। उनकी आजादी के लिए एक बार फिर सुभाष चंद्र बोश के जैसे रोहन लगा पड़ा था। स्वाति और सरला चैन से टीवी पर कार्यक्रम देख रही थी, इस उम्मीद में की अब राज्य की बेटियां सुरक्षित हो जाएँगी।
copyright @गूंजन झाझरिया
शनिवार, नवंबर 19
परवरिश
टखनो तक जमी हुई मिटटी और गली के मोड़ वाले पीपल के सूखे पत्तो को इधर-उधर उड़ाते देखा तो अनुमान लगाया, " आंधी आई होगी!"
स.के. साहब सरकारी दफ्तर में क्लर्क हैं,कस्बे के बाहर कागजी काम से जाते रहते हैं,
पत्नी, इकलौते बेटे के साथ शहर में रहती थी!
बेटा M.A. की पढाई के लिए शहर गया था, शहर का दाना-पानी लगा नहीं और सेहत दुबली होने लगी!
तभी उनकी धर्म-पत्नी ने शहर जाने की ठानी, आखिर पढाई का सवाल था!
तभी उनकी धर्म-पत्नी ने शहर जाने की ठानी, आखिर पढाई का सवाल था!
यूँ तो स.के. साहब की उम्र हो गई है, पर अपने सारे काम अब भी बहुत अच्छे से कर लेते हैं!
नलका चला कर एक मटका पानी भरा,और कंठ भिगो कर आँगन साफ़ करने में लग गये!
"अंकल आ गए? मेरा काम किया या नहीं?"
देखा तो सुशांत अपने घर की दीवार के ऊपर से झांक कर बोल रहा था!
सुशांत अभी कुछ ही महीनो पहले बगल वाले घर में रहने आया था किराये पर!
विद्यार्थी है, न जाने कितनी प्रतियोगी परीक्षाओ के फॉर्म भरता रहता है.
"हा भाई, तुम्हारा फॉर्म ले आया हूँ, थोड़ी देर में आता हूँ!"
स.के.साहब का लाडला था, उसकी पढाई की लगन देखकर तो स.के.साहब ने अपनी पत्न्नी
को कह दिया था-ये लड़का जरुर किसी दिन नाम रोशन करेगा!
पीपल के पत्तो को इकठा किया और कोने में रखे कूड़े दान में दाल दिया.
यूँ तो घर पर ही चाय बना लेते थे, पर कभी मन हो तो बगल के टी-स्टाल पर चले जाते थे,
चाय के साथ थोड़ी मोहल्ले की खबर भी लग जाती थी!
टी-स्टाल के लिए निकले तो सोचा-फॉर्म भी देते हुए निकलता हु सुशांत को!
जैसे ही सुशांत के घर का दरवाजा खोला, तो देखा एक लड़की बगीचे में बैठी
पढ़ रही है!
"सुशांत है?"
लड़की ने देखा और बोली
"नमस्ते अंकल, सुशांत तो बहार गया है अभी अभी!
आप फॉर्म वाले अंकल हो न ? लाइए मुझे ही दे दीजिये!"
"तुम??" स.के.साहब ने बड़ी विस्मयता से पुछा!
"अंकल मैं मनाली हूँ, सुशांत और मैं साथ ही पढ़ते हैं!
साथ में पढाई अच्छे से हो जाती है, सो अक्सर आ जाती हूँ!
उसने बताया था की आप हमारे फॉर्म लाते हो,
दो लाये हो न अंकल?"
"है??हां ...हाँ दो ही लाया हु
चलो तुम पढो मैं निकलता हु, मन लगाकर पढना दोनों"
"अच्छा अंकल" बड़ी ही मासूमियत से जवाब आया!
"कितनी प्यारी बच्ची है!""अच्छा तो सुशांत ने दो फॉर्म इस्सी वजह से मंगवाए थे"
यही सोचते हुए स.के.साहब टी-स्टाल तक पहुचे.
"और मुरली बाबु कैसे हो?"
"अरे स.के.साहब आप? आइये अभी चाय बनवाई है, सही टाइम पर आये हो! कब लौटे?"
मुरली बाबु बोले!
दो बेटियों के पिता थे मुरली बाबु ! बड़ी बेटी कॉलेज में आ गई थी, पर ये कहकर प्राइवेट फॉर्म भरवाया
की "आजकल की हवा ख़राब है, जितने आँखों के सामने रहे बच्चे, उतना अच्छा है"
छोटी अभी स्कूल में पढ़ती है!
"धन्यवाद, अभी कुछ ही देर पहले लौटा था, आते हुए सुशांत को फॉर्म देते हुए आ रहा हु!"
स.के साहब ने उत्तर दिया!
मुरली बाबु-"सुशांत कौन? वही जो आपके घर के बगल वाले घर में रहता है?"
स.के.साहब -"हाँ, बड़ा ही होनहार बच्चा हैं"
मुरली बाबु चौंके -" अरे, होनहार? स.के.साहब कोई गलतफहमी हुए होगी आपको!
आप यह कम ही रहते हो, सो ज्यादा नहीं जानते!
ये सुशांत तो एक नंबर का आवारा लड़का है, अपनी दुपहिया पर
रोज किसी लड़की को बिठा कर डोलता है, आजकल तो वो इसके घर भी आने लगी है!
ऐसे बच्चे ही तो माता-पिता के नाम पर कलंक लगते हैं!"
एक ही साँस में, इतने विश्वास के साथ कहे थे ये शब्द मुरली बाबु ने!
स.के. साहब कुछ नहीं बोले, चाय ख़त्म करो, और कहा
"अच्छा मुरली बाबु निकलता हु, सुबह दफ्तर जाना है!"
पैसे देने के लिए रुके तो रेडियो पर मुख्या समाचार आ रहे थे!
स.के.साहब ने चाय वाले से कहा" भाई थोड़ी आवाज तेज कर दो, आज यह आने की जल्दी में सुबह
अखबार भी नहीं पढ़ पाया था, जरा सुन लूँ"
"आकाशवाणी में आपका स्वागत है, पेश हैं अब तक के मुख्या समाचार!
I.A.S. की परीक्षा में सुशांत चौधरी ने प्रथम स्थान प्राप्त किया..........
बस यही एक वाकया सुन पाए थे स.के. साहब और बस ख़ुशी से
झूम उठे, " अरे ये तो हमारा सुशांत है"
सुशांत के आगे हमारा शब्द कब जुड़ा, उन्हें खुद को समझ नहीं आया!
मुड कर मुरली बाबु को देखा तो वो झेंप गए.
बिना कुछ कहे स.के साहब घर की तरफ चल दिए.
"अंकल" सुशांत ने पुकारा और आकर पैर छु लिए!
"I topped I.A.S. Exam"
स.के. साहब- "पता है बेटा, मैंने सुना अभी रेडियो पर.सच में मुझे बहुत ख़ुशी हुए!
जानता था तुम्हारी लगन जरुर काम आयेगी,
अरे मनाली बिटिया, तुम्हारा मुह क्यों उतरा है,थोड़ी देर पहले तो बड़ा चहक रही थी? "
"अंकल मेरा तो 5th रंक ही आया है.." रुआंसी होकर मनाली ने जवाब दिया!
तो सुशांत और स.के.साहब ठहाके लगाकर हसने लगे!
"टॉप-टेन में तो हो न?" दोनों ने एक साथ कहा!
"चलो बच्चो, आज रात का खाना मेरे घर पर!अपने दोस्तों को भी बुला लेना!
तुम्हारी जीत की ख़ुशी में आज हम सब साथ खायेगे"
स.के.साहब बोले
मनाली-"अरे वह अंकल ! पक्का हम रात में आ जायेगे!"
शाम को स.के साहब कुछ खाने की तयारी में जुटे थे, बच्चो को दावत देनी थी!
तभी दूध वाला आया, उससे खबर मिली
की मुरली बाबु की बड़ी बेटी अभी किसी लड़के से कोर्ट में शादी करके घर आई है!
स.के.साहब ने मन में सोचा-अक्सर जो लोग बच्चो पर ज्यादा पाबन्दी लगते हैं, या दुसरो के बच्चो को कोसते हैं, उनकी परवरिश में कमी रह ही जाती है!
इतने में सुशांत और मनाली आ गये अपने दोस्तों के साथ.
"अंकल भूख लगी है"मनाली ने चहकते हुए कहा!
शुक्रवार, नवंबर 18
अर्धांगिनी
शालिनी गृहस्थी का सारा काम सुबह-२ निपटा कर, हॉल में रखे सोफे पर बैठी चाय की चुस्किय ले रही थी!
९-१० बजे तक तो रोज काम ख़तम हो जाता है और फिर वो अपने पसंद के धारावाहिक का मजा लेती है दोपहर भर! विवेक तो सुबह ८ बजे ही चले जाते हैं ऑफिस!
(शालिनी और विवेक की शादी को अभी २ ही महीने हुए थे, की विवेक का ट्रान्सफर हो गया चंडीगढ़ से पुणे..
शालिनी भी इकोनोमिक्स में Ph.D. है! उसके पापा की इच्छा थी कि उनकी बेटी एक अच्छी इकोनोमिस्ट बने!
और उनका नाम रोशन करे! किन्तु जब अच्छा लड़का और घर-परिवार मिलता नजर आया तो अपना और बेटी का सपना भुला कर उन्होंने शालिनी को इस रिश्ते के लिए मना लिया, ससुराल वालो कि इस शर्त पर कि शालिनी शादी के बाद जॉब नहीं करेगी!
और इस तरह वो भविष्य की इकोनोमिस्ट T.V.के चैनल की टी. आर.पी. बढा रही है!)
ट्रिंग-ट्रिंग -----हॉल में टेलीविजन वाली टेबल के निचे रखे लैंड -लाइन फ़ोन की घंटी बजी!
लपक कर शालिनी ने फ़ोन उठाया की शायद विवेक का ही फ़ोन होगा!
हेल्लो...शालिनी...बेटा मैं बोल रही हु...!!!
(शालिनी की सास का फ़ोन था, अनपद थी पर सुशील और सुग्रहनी थी! और शालिनी से काफी लगाव था! एकलौती बहु जो ठहरी ! रोज खुद फ़ोन करती थी!)
सास से बात करके शालिनी की बोरियत भाग गई और फिर शालिनी ऊपर दाल साफ़ करने चली गई!
निचे आई तो देखा की विवेक का मेसेज आया है मोबाइल फ़ोन पर!
शालू! तुम रात में खाना बना के खा लेना और मेरे लिए रख देना ! मुझे देर हो जाएगी!
मिस यू !
शालिनी ने पढ़ा और फिर सोचने लगी की अभी बता दिया है यानी आज तो फ़ोन भी नहीं आएगा...अकेले जैसे-तैसे शाम होती है इंतज़ार में .आज पता नहीं समय कैसे कटेगा!
विवेक ११ बजे आया!खाना खा के सो गया! फिर तो जैसे रोज ही ११ बजे आना आम बात हो गई थी विवेक के लिए! सुबह ८-९ बजे चले जाता और ११ बजे तक घर आता! थका-हरा चुप-चाप सो जाता!
"इतनी मेहनत क्यों करते हो? खुद को भी आराम देना चाहिए" चाय बनाते हुए शालिनी ने बोला..
महीने के दुसरे शनिवार की छुटी थी! इसलिए दोनों देर से उठे थे...
"अरे यार! आजकल ऊपर की तनख्वाह भी जरुरी है...इतनी महंगाई में २५,००० से क्या होता है?
और फिर भविष्य के लिए भी तो बचना है या नहीं?"
विवेक ने चाय का प्याला शालिनी के हाथ से लेते हुए कहा!
"हम्म ......पर ये कौनसा न्याय है कि एक तो रात-दिन काम कर के अपने आपको तोड़ ले और दूसरा बोरियत दूर करने के लिए काम ढूंढे? मैं क्यों नहीं तुम्हारा हाथ बटा सकती?" शालिनी ने पास वाले सोफे पर बठकर कहा!
विवेक को शायद उसकी यह बात पसंद न आई थी!
"इस बात पर क्या बहस करनी जब मम्मी-पापा को पसंद नहीं"
शालिनी को बात ख़तम करना ही ठीक लगा!पर जैसे वो बात उसके दिमाग के किसी कोने में चिपक ही गई हो...रात भर सोचती रही और फिर फैसला लिया अपनी सास से उस बारे में बात करेगी!
उठ कर जल्दी से विवेक का नाश्ता बनाया और उसकी गाड़ी भी साफ़ करदी...फिर चाय बना कर उसे उठाया!
विवेक तो हैरान ही था!
नहाने के लिए तौलिया उठाते हुए पूछ ही बैठा---शालू, रात भर ही काम कर रही थी क्या?
"नहीं, दिन में सो ली थी तो आँख जल्दी खुल गई" शालिनी ने मुस्कुरा कर कहा!
विवेक के जाते ही अपनी सास को फ़ोन लगाया !
" माँ, कैसे हो?"---शालिनी
" क्या बात है, आज इतनी सुबह ही काम हो गया सारा?"
"नहीं माँ, बस आपसे कुछ बात करनी है, आप बुरा न मानना !
मुझे परिवार के रिवाजो का भी ध्यान है और आपके और पापा के फैसले का भी सम्मान करती हूँ, पर माँ विवेक का साथ देना भी तो मेरा ही फर्ज है! विवेक को रात दिन पिसते नहीं देखा जाता!
आप तो जानती है कि वो कितना देर--२ तक काम करते हैं! ऐसे में मैं कैसे घर पे चैन से बैठू?
आपकी राय जाननी थी किया करना चाहिए?"
शालिनी ने उन्हें और उनके बड़प्पन को बिना ठेस पहुचाये प्यार से अपने मन की व्यथा को समझाया!!
और माँ का मन बेटे-बहु की परिस्थिति समझ गया!
" बेटी, औरत का पहला काम -घर को संभालना है! बाहर के काम के चक्कर में कई बार घर पर झगडे होते हैं! यही नहीं चाहती थी मैं, इसलिए मना किया था! अगर तुझे लगता है की तू घर सँभालने के साथ बाहर का काम अच्छे से कर पायेगी, जिससे तेरी गृहस्थी पर कोई असर नहीं पड़ेगा...तो तू जॉब कर कर सकती है!
इससे विवेक की मदद भी हो पाएगी."""
"माँ, मुझे पता था आप समझोगी, मैं वादा करती हूँ, की मेरे बाहर के काम से घर के माहौल में कोई फर्क नहीं आएगा, मैं पहले की तरह सब अच्छे से कर लूगी...थंक यू माँ.." शालिनी के पास तो मानो शब्द ही कम पड़ गए हो!
तुरंत फ़ोन किया विवेक को!और सब बता दिया!
शाम को ६.३० बजे बेल बजी! शालिनी ने जैसे ही दरवाजा खोला विवेक को देखकर चौंक ही गई !
" आप और इतनी जल्दी कैसे?"
" मुझे तुम पर नाज है! अरे अब मुझे देर से आने का क्या जरुरत?
दोनों मिल के कमायेगे और रोज शाम की चाय भी साथ ही पियेंगे"
विवेक ने पुरे जोश में सीना तान कर कहा!
आज दोनों को साथ बालकनी में बैठे चाय हाथ में लिए देखा तो पडोसी भी पूछ ही बैठे!
" आज विवेक जल्दी कैसे?"
" अर्धांगिनी से मिलने का मन हुआ और आ गया !" विवेक ने हसकर जवाब दिया!!!
------गुंजन झाझारिया
९-१० बजे तक तो रोज काम ख़तम हो जाता है और फिर वो अपने पसंद के धारावाहिक का मजा लेती है दोपहर भर! विवेक तो सुबह ८ बजे ही चले जाते हैं ऑफिस!
(शालिनी और विवेक की शादी को अभी २ ही महीने हुए थे, की विवेक का ट्रान्सफर हो गया चंडीगढ़ से पुणे..
शालिनी भी इकोनोमिक्स में Ph.D. है! उसके पापा की इच्छा थी कि उनकी बेटी एक अच्छी इकोनोमिस्ट बने!
और उनका नाम रोशन करे! किन्तु जब अच्छा लड़का और घर-परिवार मिलता नजर आया तो अपना और बेटी का सपना भुला कर उन्होंने शालिनी को इस रिश्ते के लिए मना लिया, ससुराल वालो कि इस शर्त पर कि शालिनी शादी के बाद जॉब नहीं करेगी!
और इस तरह वो भविष्य की इकोनोमिस्ट T.V.के चैनल की टी. आर.पी. बढा रही है!)
ट्रिंग-ट्रिंग -----हॉल में टेलीविजन वाली टेबल के निचे रखे लैंड -लाइन फ़ोन की घंटी बजी!
लपक कर शालिनी ने फ़ोन उठाया की शायद विवेक का ही फ़ोन होगा!
हेल्लो...शालिनी...बेटा मैं बोल रही हु...!!!
(शालिनी की सास का फ़ोन था, अनपद थी पर सुशील और सुग्रहनी थी! और शालिनी से काफी लगाव था! एकलौती बहु जो ठहरी ! रोज खुद फ़ोन करती थी!)
सास से बात करके शालिनी की बोरियत भाग गई और फिर शालिनी ऊपर दाल साफ़ करने चली गई!
निचे आई तो देखा की विवेक का मेसेज आया है मोबाइल फ़ोन पर!
शालू! तुम रात में खाना बना के खा लेना और मेरे लिए रख देना ! मुझे देर हो जाएगी!
मिस यू !
शालिनी ने पढ़ा और फिर सोचने लगी की अभी बता दिया है यानी आज तो फ़ोन भी नहीं आएगा...अकेले जैसे-तैसे शाम होती है इंतज़ार में .आज पता नहीं समय कैसे कटेगा!
विवेक ११ बजे आया!खाना खा के सो गया! फिर तो जैसे रोज ही ११ बजे आना आम बात हो गई थी विवेक के लिए! सुबह ८-९ बजे चले जाता और ११ बजे तक घर आता! थका-हरा चुप-चाप सो जाता!
"इतनी मेहनत क्यों करते हो? खुद को भी आराम देना चाहिए" चाय बनाते हुए शालिनी ने बोला..
महीने के दुसरे शनिवार की छुटी थी! इसलिए दोनों देर से उठे थे...
"अरे यार! आजकल ऊपर की तनख्वाह भी जरुरी है...इतनी महंगाई में २५,००० से क्या होता है?
और फिर भविष्य के लिए भी तो बचना है या नहीं?"
विवेक ने चाय का प्याला शालिनी के हाथ से लेते हुए कहा!
"हम्म ......पर ये कौनसा न्याय है कि एक तो रात-दिन काम कर के अपने आपको तोड़ ले और दूसरा बोरियत दूर करने के लिए काम ढूंढे? मैं क्यों नहीं तुम्हारा हाथ बटा सकती?" शालिनी ने पास वाले सोफे पर बठकर कहा!
विवेक को शायद उसकी यह बात पसंद न आई थी!
"इस बात पर क्या बहस करनी जब मम्मी-पापा को पसंद नहीं"
शालिनी को बात ख़तम करना ही ठीक लगा!पर जैसे वो बात उसके दिमाग के किसी कोने में चिपक ही गई हो...रात भर सोचती रही और फिर फैसला लिया अपनी सास से उस बारे में बात करेगी!
उठ कर जल्दी से विवेक का नाश्ता बनाया और उसकी गाड़ी भी साफ़ करदी...फिर चाय बना कर उसे उठाया!
विवेक तो हैरान ही था!
नहाने के लिए तौलिया उठाते हुए पूछ ही बैठा---शालू, रात भर ही काम कर रही थी क्या?
"नहीं, दिन में सो ली थी तो आँख जल्दी खुल गई" शालिनी ने मुस्कुरा कर कहा!
विवेक के जाते ही अपनी सास को फ़ोन लगाया !
" माँ, कैसे हो?"---शालिनी
" क्या बात है, आज इतनी सुबह ही काम हो गया सारा?"
"नहीं माँ, बस आपसे कुछ बात करनी है, आप बुरा न मानना !
मुझे परिवार के रिवाजो का भी ध्यान है और आपके और पापा के फैसले का भी सम्मान करती हूँ, पर माँ विवेक का साथ देना भी तो मेरा ही फर्ज है! विवेक को रात दिन पिसते नहीं देखा जाता!
आप तो जानती है कि वो कितना देर--२ तक काम करते हैं! ऐसे में मैं कैसे घर पे चैन से बैठू?
आपकी राय जाननी थी किया करना चाहिए?"
शालिनी ने उन्हें और उनके बड़प्पन को बिना ठेस पहुचाये प्यार से अपने मन की व्यथा को समझाया!!
और माँ का मन बेटे-बहु की परिस्थिति समझ गया!
" बेटी, औरत का पहला काम -घर को संभालना है! बाहर के काम के चक्कर में कई बार घर पर झगडे होते हैं! यही नहीं चाहती थी मैं, इसलिए मना किया था! अगर तुझे लगता है की तू घर सँभालने के साथ बाहर का काम अच्छे से कर पायेगी, जिससे तेरी गृहस्थी पर कोई असर नहीं पड़ेगा...तो तू जॉब कर कर सकती है!
इससे विवेक की मदद भी हो पाएगी."""
"माँ, मुझे पता था आप समझोगी, मैं वादा करती हूँ, की मेरे बाहर के काम से घर के माहौल में कोई फर्क नहीं आएगा, मैं पहले की तरह सब अच्छे से कर लूगी...थंक यू माँ.." शालिनी के पास तो मानो शब्द ही कम पड़ गए हो!
तुरंत फ़ोन किया विवेक को!और सब बता दिया!
शाम को ६.३० बजे बेल बजी! शालिनी ने जैसे ही दरवाजा खोला विवेक को देखकर चौंक ही गई !
" आप और इतनी जल्दी कैसे?"
" मुझे तुम पर नाज है! अरे अब मुझे देर से आने का क्या जरुरत?
दोनों मिल के कमायेगे और रोज शाम की चाय भी साथ ही पियेंगे"
विवेक ने पुरे जोश में सीना तान कर कहा!
आज दोनों को साथ बालकनी में बैठे चाय हाथ में लिए देखा तो पडोसी भी पूछ ही बैठे!
" आज विवेक जल्दी कैसे?"
" अर्धांगिनी से मिलने का मन हुआ और आ गया !" विवेक ने हसकर जवाब दिया!!!
------गुंजन झाझारिया
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