रविवार, जुलाई 15

बेटियों की आजादी..


“रोहन चिड़िया के बर्तन में पानी डाल दे...कितनी गर्मी है।.” सरला चिल्लाई।
सरला का स्वाभाव उसके नाम के विपरीत ही था। छोटी छोटी बात को वो चिल्ला कर ही कहती थी और उसकी आदत प ड़गई थी सब घर वालों को , साथ में पड़ोस की वर्मा आंटी को भी।
“माँ, चाय..”
“अरे...चाय रख और पहले इस बर्तन में पानी डाल..” (जब तक कोई काम हो ना जाए, सरला बार बार कहती रहती!)
“माँ, रोहन पानी लेके आ रहे हैं, आप चाय पियो।मैं सुबह डाल रही थी, फिर वो कबाड़ी वाला आ गया और भूल ही गई” स्वाति ने चाय का कप सरला के हाथ में पकडाया।
रोहन ने चिडियाओं को पानी पिलाया और तीनों बैठकर चाय पीने लगे।
(सरला के पति फ़ौज में थे..ब्याह के ३ बरस बाद ही जब रोहन कोई ८ महीने का था, वो देश की लाज बचाते हुए शहीद हो गए..और सरला पीछे अपने इकलोते बेटे के साथ आँसू बहती रह गयी।एक निजी स्कूल में नौकरी की और रोहन को पढाया-लिखाया।आज बेटा कलेक्टर है और अब सरला पूरा आराम फरमाती है। जिंदगी भर की मेहनत की पूरी भरपाई ले रही है।)
“रोहन, आज टीवी में जो खबर दिखा रहे थे, आपने सुना?” स्वाति ने चुप्पी तोड़ी।
“नहीं, आज बहुत काम था। मैं सुबह अखबार भी नहीं पढ़ पाया..बताओ..” रोहन वैसे पूरा अखबार चाट देता था !
“कुछ नहीं बेटा, जमाना खराब आ गया है। मैंने देखी थी और बहु को भी दिखाई। कल एक ही दिन में हमारे प्रदेश में ५ नवजात शव मिले बच्चियों के। लोगो को भी क्या कहो। पूरा समाज तो आँखों में खून लिए, जीभ लटकाए घूमता है। बाप और भाई ही नहीं छोड़ते।ऐसे में कोई बेटी जन कर भी क्या करे?”
“हम्म...बात तो सोचने वाली है माँ..पर ये तो कोई हल नहीं है समस्या का...यदि बेटियां सुरक्षित नहीं तो उन्हें जनों ही मत।” रोहन की त्योरियां देख कर लग रहा था कि उसे माँ की सुनाई खबर पर बहुत गुस्सा आ रहा है..!
“तो आप ही बताओ क्या हल है? रोहन सब कह देते हैं। कौन करता है। कोई एक भी बताओ, जो आगे आकर बोला हो कि इस विषय में कोई सभा आयोजित करो, मीटिंग बुलाओ , साथ में बैठकर कोई उपाय निकालेंगे.??.अरे ये सब होता रहता है, और लोग थोडा गुस्सा और नाराजगी जता कर अपनी दिनचर्या के काम में लग जाते हैं।”
स्वाति बड़ी ही क्रांतिकारी विचारों की थी।बस बहु होने के  कारन थोडा परिवार की इज्ज़त का सोचकर शांत रहती थी। वरना उसका मन तो होता था कि अकेले ही सब से लड़ ले और शुरुवात कर दे जंग की।
“स्वाति बात तो तुम्हारी भी पते की है।.चलो तुम खाना बना लो पहले। आज माँ को डॉक्टर के पास लेके जाना है। इस बारे में बाद में बात करेंगे.”
रोहन तो स्वाति का गुस्सा और तर्क देखकर निशब्द हो गया था और जनता था कि इस विषय को और बढ़ाया तो श्रीमतीजी उत्तेजित हो जाएँगी।
(खाना वाना निपटा कर तीनों डॉक्टर के पास गए..पर रोहन के मन में अभी भी माँ की सुनाई खबर और स्वाति का तर्क ही घूम रहा था..अपने पिता के लिए रोहन के मन में अथाह सम्मान था..हो भी क्यों ना? बचपन से ही स्कूल , कॉलेज हर जगह उसे सबने सम्मान दिया कि ये शहीद का बेटा है। देशभक्ति, समाजसेवा..सब माँ में सिखाया और पिता के जींस से भी पाया। तभी तो कलेक्टर बनने की ठानी। निचले स्तर पर लोगो से सीधा रूबरू होने का मौका मिलेगा और उनकी समस्याए सुलझाने का भी।)
रात के १० बज गए ..और सरला अपने कमरे में सोने चली गई। स्वाति कुछ किताब में उलझी थी। रोहन अपने लैपटॉप पर वही खबर देख रहा था। तभी अचानक उसे लगा कि उसे कुछ करना चाहिए।
एकाएक स्वाति की बातें दिमाग में आयीं ( किसी ने मीटिंग बुलवाई?)
क्यों ना सारे राज्य के कलेक्टर्स की मीटिंग बुलवाई जाए। कुछ ऐसी सख्त योजना मिलकर बने जाए जिससे कि कम से कम अपराध हों। पहले जो हैं उनकी इज्ज़त बचायी जाए और फिर जन्म देने और पालने पर जोर दिया जाए।
तुरंत उसने ईमेल लिख डाली सम्बंधित अधिकारी को।

“रोहन ११ बज गए? लैपटॉप में ही लगे रहा करो..सोना नहीं है क्या? परसों १५ अगस्त है। मैं भी चलूंगी आपके साथ। आपको कौन कौन से निमत्रण आयें हैं आपने बताया नहीं..?” स्वाति ने किताब के पन्ने को मोड़ते हुए कहा।
“स्वाति अभी कुछ नहीं पता, हाँ, तुम्हें लेके चलूँगा..पर कल ही बताऊंगा कहाँ जाना है...” रोहन ने तिरछी निगाह से मुस्कुराते हुए कहा। रात भर करवते बदलता रहा और सोचता रहा कि कैसे प्लानिंग करनी है? क्या क्या स्टेप्स होंगे?
सुबह पहली किरण के साथ स्वाति से पहले उठकर अपना लैपटॉप खोला!
अधिकारी का जवाब हाँ में था और उसने तुरंत वह ईमेल आगे सभी कलेक्टर्स को भेज दी थी और उसने सबसे सुबह ९ बजे तक समय निर्धारित करने को कहा साथ ही रोहन को शाबाशी भी मिली ऐसा सोचने के लिए।
रोहन नाच रहा था। जानता था ये शुरुवात है, पर किसी ने शुरुवात तो की।
“स्वाति..स्वाती...माँ...उठो..”
“क्या हुआ..मैं चाय बना लेती हूँ। स्वाति को सोने दे। फिर सारा दिन काम करेगी “ सरला उठकर आई।
“माँ , चाय के लिए नहीं उठा रहा, मेरी क्रांतिकारी बीवी के विचारों की जरुरत है। उससे प्लान्स लेने है, कि हम और कैसे और क्या कर सकते हैं?” रोहन उतावलेपन में भूल गया कि उसने मीटिंग के बारे में स्वाति और सरला को कुछ नहीं बताया था!
“आंखे मसलकर सरला बोली, कैसे प्लान्स...? क्या बोल रहा सुबह सुबह कलेक्टर बाबा.” सरला हंसी..
“ओह्हो, मैंने तो आप दोनों को कुछ नहीं बताया था..:(“ रोहन को याद आया..
“माँ आप रुको मैं चाय बना देती हूँ....आप इनकी सुनो ..पता नहीं क्या चल रहा है दिमाग में। रात भर ना खुद सोये ना सोने दिया। करवट बदल रहे थे। ऐसे कोई सो सकता है क्या पास में..” स्वाति थोड़े गुस्से में थी..
“अरे यार स्वाति, तुम भी कमाल करती हो। तुम्हें सोने की पड़ी है और यहाँ पूरा प्रशासन हिल गया।हा हा “ रोहन बहुत अच्छे मूड में था...
“क्या मतलब” दोनों सास-बहु एक ही स्वर में बोली..
रोहन ने दोनों को पूरी बात बतलाई और साथ में वो मेल भी दिखाई..
“ बस अब ९ बजे का इंतज़ार है..देखो क्या समय और तारीख निश्चित होती मीटिंग के लिए। स्वाति तुम थोडा हेल्प कर दो। साथ में बैठकर एक अच्छा सा प्लान तैयार करते हैं। सब देख भाल कर मीटिंग में जाना अच्छा होगा।”
रोहन बस बोल ही रहा था और स्वाति रोहन को देख रही थी, कैसा पति मिला है। स्वाति तो खुद बचपन से ऐसे किसी काम में योगदान देना चाहती थी..उसे तो मानो पर लग गए।
भाग भाग कर सारा घर का काम खतम किया ।
और दोनों काम में लग गए, सरला भी साथ में ही थी। तीनों ने तर्क, वितर्क किये..कई बार बहस, गुस्सा भी..और आखिर में बना दिया एक अच्छा सा प्लान,पूरे समाज की बेटियों की सुरक्षा का।
९ बजते ही रोहन ने लैपटॉप खोला। तीनों इतने बेसब्री से मेल देख रहे थे ।
“दूसरे दिन सुबह ही मीटिंग है माँ..” रोहन और स्वाति खुश हो गए।
सरला को बड़ा नाज़ हो रहा था अपने बेटे बहु को देखकर। मन ही मन कह रही थी "रोहन अपने पापा की क़ुरबानी का लाज जरुर रखेगा”
१५ अगस्त की सुबह ८ बजे जहाँ एक और पूरे देश में तिरंगा फहराया जा रहा था, राष्ट्र-गान गाया जा रहा था। आजादी की कहानिया सुनाई जा रही थी।
वही दूसरी और सभी कलेक्टर्स बेटियों की रक्षा के लिए नए और अच्छे नियम लगाने की कवायद में जुटे थे। उनकी आजादी के लिए एक बार फिर सुभाष चंद्र बोश के जैसे रोहन लगा पड़ा था। स्वाति और सरला चैन से टीवी पर कार्यक्रम देख रही थी, इस उम्मीद में की अब राज्य की बेटियां सुरक्षित हो जाएँगी।

copyright @गूंजन झाझरिया