शनिवार, नवंबर 19

परवरिश


टखनो तक जमी हुई मिटटी और गली के मोड़ वाले पीपल के सूखे पत्तो को इधर-उधर उड़ाते देखा तो अनुमान लगाया, " आंधी आई होगी!"
स.के. साहब सरकारी दफ्तर में क्लर्क हैं,कस्बे के बाहर कागजी काम से जाते रहते हैं,
पत्नी, इकलौते बेटे के साथ शहर में रहती थी!
बेटा M.A. की पढाई के लिए शहर गया था, शहर का दाना-पानी लगा नहीं और सेहत दुबली होने लगी!
तभी उनकी धर्म-पत्नी ने शहर जाने की ठानी, आखिर पढाई का सवाल था!
यूँ तो स.के. साहब की उम्र हो गई है, पर अपने सारे काम अब भी बहुत अच्छे से कर लेते हैं!

नलका चला कर एक मटका पानी भरा,और कंठ भिगो कर आँगन साफ़ करने में लग गये!
"अंकल आ गए? मेरा काम किया या नहीं?"
देखा तो सुशांत अपने घर की दीवार के ऊपर से झांक कर बोल रहा था!
सुशांत अभी कुछ ही महीनो पहले बगल वाले घर में रहने आया था किराये पर!
विद्यार्थी है, न जाने कितनी प्रतियोगी परीक्षाओ के फॉर्म भरता रहता है.
"हा भाई, तुम्हारा फॉर्म ले आया हूँ, थोड़ी देर में आता हूँ!"

स.के.साहब का लाडला था, उसकी पढाई की लगन देखकर तो स.के.साहब ने अपनी पत्न्नी 
को कह दिया था-ये लड़का जरुर किसी दिन नाम रोशन करेगा!

पीपल के पत्तो को इकठा किया और कोने में रखे कूड़े दान में दाल दिया.

यूँ तो घर पर ही चाय बना लेते थे, पर कभी मन हो तो बगल के टी-स्टाल पर चले जाते थे,
चाय के साथ थोड़ी मोहल्ले की खबर भी लग जाती थी!
टी-स्टाल के लिए निकले तो सोचा-फॉर्म भी देते हुए निकलता हु सुशांत को!

जैसे ही सुशांत के घर का दरवाजा खोला, तो देखा एक लड़की बगीचे में बैठी 
पढ़ रही है!
दरवाजे की आवाज से भी ध्यान नहीं भटका!
"सुशांत है?"

लड़की ने देखा और बोली
"नमस्ते अंकल, सुशांत तो बहार गया है अभी अभी!
आप फॉर्म वाले अंकल हो न ? लाइए मुझे ही दे दीजिये!"

"तुम??" स.के.साहब ने बड़ी विस्मयता से पुछा!

"अंकल मैं मनाली हूँ, सुशांत और मैं साथ ही पढ़ते हैं!
साथ  में पढाई अच्छे से हो जाती है, सो अक्सर आ जाती हूँ!
उसने बताया था की आप हमारे फॉर्म लाते हो, 
दो लाये हो न अंकल?"

"है??हां ...हाँ दो ही लाया हु
चलो तुम पढो मैं निकलता हु, मन लगाकर पढना दोनों"

"अच्छा अंकल" बड़ी ही मासूमियत से जवाब आया!

"कितनी प्यारी बच्ची है!""अच्छा तो सुशांत ने दो फॉर्म इस्सी वजह से मंगवाए थे"
यही सोचते हुए स.के.साहब टी-स्टाल तक पहुचे.

"और मुरली बाबु कैसे हो?"
"अरे स.के.साहब आप? आइये अभी चाय बनवाई है, सही टाइम पर आये हो! कब लौटे?"
मुरली बाबु बोले!

दो बेटियों के पिता थे मुरली बाबु ! बड़ी बेटी कॉलेज में आ गई थी, पर ये कहकर प्राइवेट फॉर्म भरवाया 
की "आजकल की हवा ख़राब है, जितने आँखों के सामने रहे बच्चे, उतना अच्छा है"
छोटी अभी स्कूल में पढ़ती है!

"धन्यवाद, अभी कुछ ही देर पहले लौटा था, आते हुए सुशांत को फॉर्म देते हुए आ रहा हु!"
स.के साहब ने उत्तर दिया!

मुरली बाबु-"सुशांत कौन? वही जो आपके घर के बगल वाले घर में रहता है?"

स.के.साहब -"हाँ, बड़ा ही होनहार बच्चा हैं"

मुरली बाबु चौंके -" अरे, होनहार? स.के.साहब कोई गलतफहमी हुए होगी आपको!
आप यह कम ही रहते हो, सो ज्यादा नहीं जानते!
ये सुशांत तो एक नंबर का आवारा लड़का है, अपनी दुपहिया पर
रोज किसी लड़की को बिठा कर डोलता है, आजकल तो वो इसके घर भी आने लगी है!
ऐसे बच्चे ही तो माता-पिता के नाम पर कलंक लगते हैं!"

एक ही साँस में, इतने विश्वास के साथ कहे थे ये शब्द मुरली बाबु ने!

स.के. साहब कुछ नहीं बोले, चाय ख़त्म करो, और कहा 
"अच्छा मुरली बाबु निकलता हु, सुबह दफ्तर जाना है!"

पैसे देने के लिए रुके तो रेडियो पर मुख्या समाचार आ रहे थे!
स.के.साहब ने चाय वाले से कहा" भाई थोड़ी आवाज तेज कर दो, आज यह आने की जल्दी में सुबह
अखबार भी नहीं पढ़ पाया था, जरा सुन लूँ"

"आकाशवाणी में आपका स्वागत है, पेश हैं अब तक के मुख्या समाचार!
I.A.S. की परीक्षा में सुशांत चौधरी ने प्रथम स्थान प्राप्त किया..........

बस यही एक वाकया सुन पाए थे स.के. साहब और बस ख़ुशी से
झूम उठे, " अरे ये तो हमारा सुशांत है"
सुशांत के आगे हमारा शब्द कब जुड़ा, उन्हें खुद को समझ नहीं आया!

मुड कर मुरली बाबु को देखा तो वो झेंप गए.
बिना कुछ कहे स.के साहब घर की तरफ चल दिए.

"अंकल" सुशांत ने पुकारा और आकर पैर छु लिए!
"I topped I.A.S. Exam"
स.के. साहब- "पता है बेटा, मैंने सुना अभी रेडियो पर.सच में मुझे बहुत ख़ुशी हुए!
जानता था तुम्हारी लगन जरुर काम आयेगी, 
अरे मनाली बिटिया, तुम्हारा मुह क्यों उतरा है,थोड़ी देर पहले तो बड़ा चहक रही थी? "

"अंकल मेरा तो 5th रंक ही आया है.." रुआंसी होकर मनाली ने जवाब दिया!

तो सुशांत और स.के.साहब ठहाके लगाकर हसने लगे!
"टॉप-टेन में तो हो न?" दोनों ने एक साथ कहा!

"चलो बच्चो, आज रात का खाना मेरे घर पर!अपने दोस्तों को भी बुला लेना!
तुम्हारी जीत की ख़ुशी में आज हम सब साथ खायेगे"
स.के.साहब बोले
मनाली-"अरे वह अंकल ! पक्का हम रात में आ जायेगे!"

शाम को स.के साहब कुछ खाने की तयारी में जुटे थे, बच्चो को दावत देनी थी!
तभी दूध वाला आया, उससे खबर मिली
की मुरली बाबु की बड़ी बेटी अभी किसी  लड़के से कोर्ट में शादी करके घर आई है!

स.के.साहब ने मन में सोचा-अक्सर जो लोग बच्चो पर ज्यादा पाबन्दी लगते हैं, या दुसरो के बच्चो को कोसते हैं, उनकी परवरिश में कमी रह ही जाती है!

इतने में सुशांत और मनाली आ गये अपने दोस्तों के साथ.
"अंकल भूख लगी है"मनाली ने चहकते हुए कहा!

शुक्रवार, नवंबर 18

अर्धांगिनी

शालिनी गृहस्थी का सारा काम सुबह-२ निपटा कर,  हॉल में रखे सोफे पर बैठी चाय की चुस्किय ले रही थी!
९-१० बजे तक तो रोज काम ख़तम हो जाता है और फिर वो अपने पसंद के धारावाहिक का मजा लेती है दोपहर भर! विवेक तो सुबह ८ बजे ही चले जाते हैं ऑफिस!


(शालिनी और विवेक की शादी को अभी २ ही महीने हुए थे, की विवेक का ट्रान्सफर हो गया चंडीगढ़ से पुणे..
शालिनी भी इकोनोमिक्स में Ph.D. है! उसके पापा की इच्छा थी कि उनकी बेटी एक अच्छी  इकोनोमिस्ट बने!
और उनका नाम रोशन करे! किन्तु जब अच्छा लड़का और घर-परिवार मिलता नजर आया तो अपना और बेटी का सपना भुला कर उन्होंने शालिनी को इस रिश्ते के लिए मना लिया, ससुराल वालो कि इस शर्त पर कि शालिनी शादी के बाद जॉब नहीं करेगी!
और इस तरह वो भविष्य की इकोनोमिस्ट T.V.के चैनल की  टी. आर.पी. बढा रही है!)


ट्रिंग-ट्रिंग -----हॉल में टेलीविजन वाली टेबल के निचे रखे लैंड -लाइन फ़ोन की घंटी बजी!


लपक कर शालिनी ने फ़ोन उठाया की शायद विवेक का ही फ़ोन होगा!


हेल्लो...शालिनी...बेटा मैं बोल रही हु...!!!


(शालिनी की सास का फ़ोन था, अनपद थी पर सुशील और सुग्रहनी थी! और शालिनी से काफी लगाव था! एकलौती बहु जो ठहरी ! रोज खुद फ़ोन करती थी!)


सास से बात करके शालिनी की बोरियत भाग गई और फिर शालिनी ऊपर दाल साफ़ करने चली गई!
निचे आई तो देखा की विवेक का मेसेज आया है मोबाइल फ़ोन पर!


शालू! तुम रात में खाना बना के खा लेना और मेरे लिए रख देना ! मुझे देर हो जाएगी!
मिस यू !


शालिनी ने पढ़ा और फिर सोचने लगी की अभी बता दिया है यानी आज तो फ़ोन भी नहीं आएगा...अकेले जैसे-तैसे शाम होती है इंतज़ार में .आज पता नहीं समय कैसे कटेगा!


विवेक ११ बजे आया!खाना खा के सो गया! फिर तो जैसे रोज ही ११ बजे आना आम बात हो गई थी विवेक के लिए! सुबह ८-९ बजे चले जाता और ११ बजे तक घर आता! थका-हरा चुप-चाप सो जाता!


"इतनी मेहनत क्यों करते हो? खुद को भी आराम देना चाहिए" चाय बनाते हुए शालिनी ने बोला..
महीने के दुसरे शनिवार की छुटी थी! इसलिए दोनों देर से उठे थे...


"अरे यार! आजकल ऊपर की तनख्वाह भी जरुरी है...इतनी महंगाई में २५,००० से क्या होता है?
और फिर भविष्य के लिए भी तो बचना है या नहीं?"
विवेक ने चाय का प्याला शालिनी के हाथ से लेते हुए कहा!


"हम्म ......पर ये कौनसा न्याय है कि एक तो रात-दिन काम कर के अपने आपको तोड़ ले और दूसरा बोरियत दूर करने के लिए काम ढूंढे? मैं क्यों नहीं तुम्हारा हाथ बटा सकती?" शालिनी ने पास वाले सोफे पर बठकर कहा!


विवेक को शायद उसकी यह बात पसंद न आई थी!
"इस बात पर क्या बहस करनी जब मम्मी-पापा को पसंद नहीं"


शालिनी को बात ख़तम करना ही ठीक लगा!पर जैसे वो बात उसके दिमाग के किसी कोने में चिपक ही गई हो...रात भर सोचती रही और फिर फैसला लिया अपनी सास से उस बारे में बात करेगी!


उठ कर जल्दी से विवेक का नाश्ता बनाया और उसकी गाड़ी भी साफ़ करदी...फिर चाय बना कर उसे उठाया!
विवेक तो हैरान ही था!
नहाने के लिए तौलिया उठाते हुए पूछ ही बैठा---शालू, रात भर ही काम कर रही थी क्या?
"नहीं, दिन में सो ली थी तो आँख जल्दी खुल गई" शालिनी ने मुस्कुरा कर कहा!


विवेक के जाते ही अपनी सास को फ़ोन लगाया !


" माँ, कैसे हो?"---शालिनी
" क्या बात है, आज इतनी सुबह ही काम हो गया सारा?"
"नहीं माँ, बस आपसे कुछ बात करनी है, आप बुरा न मानना !
मुझे परिवार के रिवाजो का भी ध्यान है और आपके और पापा के फैसले का भी सम्मान करती हूँ,  पर माँ विवेक का साथ देना भी तो मेरा ही फर्ज है! विवेक को रात दिन पिसते नहीं देखा जाता!
आप तो जानती है कि वो कितना देर--२ तक काम करते हैं! ऐसे में मैं कैसे घर पे चैन से बैठू?
आपकी राय जाननी थी किया करना चाहिए?"


शालिनी ने उन्हें और उनके बड़प्पन को बिना ठेस पहुचाये प्यार से अपने  मन की  व्यथा को समझाया!!
और माँ का मन बेटे-बहु की परिस्थिति समझ गया!


" बेटी, औरत का पहला काम -घर को संभालना है! बाहर के  काम के चक्कर में कई बार घर पर झगडे होते हैं! यही नहीं चाहती थी मैं, इसलिए मना किया था! अगर तुझे लगता है की तू घर सँभालने के साथ बाहर का काम अच्छे से कर पायेगी, जिससे तेरी गृहस्थी पर कोई असर नहीं पड़ेगा...तो तू जॉब कर कर सकती है!
इससे विवेक की मदद भी हो पाएगी."""
"माँ, मुझे पता था आप समझोगी, मैं वादा करती हूँ, की मेरे बाहर के काम से घर के माहौल में कोई फर्क नहीं आएगा, मैं पहले की तरह सब अच्छे से कर लूगी...थंक यू माँ.." शालिनी के पास तो मानो शब्द ही कम पड़ गए हो!
तुरंत फ़ोन किया  विवेक को!और सब बता दिया!


शाम को ६.३० बजे बेल बजी! शालिनी ने जैसे ही दरवाजा खोला विवेक को देखकर चौंक ही गई !
" आप और इतनी जल्दी कैसे?"
" मुझे तुम पर नाज है! अरे अब मुझे देर से आने का क्या जरुरत?
दोनों मिल के कमायेगे और रोज शाम की चाय भी साथ ही पियेंगे"
विवेक ने पुरे जोश में सीना तान कर कहा!


आज दोनों को साथ बालकनी में बैठे  चाय हाथ में लिए देखा तो  पडोसी भी पूछ ही बैठे!
" आज विवेक जल्दी कैसे?"


" अर्धांगिनी से मिलने का मन  हुआ और आ गया !" विवेक ने हसकर जवाब दिया!!!


------गुंजन झाझारिया